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(११७) लेतां न करशो लाज लाल रे ॥ सु० ॥४॥धन लेई केतुं तिहां, कुमर गयो वन मांहिं लाल रे ॥ रयणि गमामी दोहिलें, राजायें चित्त चाहिं लाल रे॥सुण ॥५॥ प्रहकालें पग नूपनां, नेटे नाणी आय लाल रे ॥ नृप कहे तुज मंत्रनी, सिकि थई निरपाय लाल रे॥सु०॥६॥ कुमर कहे काश्क थई, कांक रही डे शेष लाल रे ॥ अर्चन थंजतणुं करी, जाईस वली तेणे देश लाल रे ॥ सु० ॥ ॥ खबर करावा थंजनी, प हेलो मूक्यो जेह लाल रे ॥ सेवक ते तिहां आने, बोल्यो धरी इम नेह लाल रे ॥ सु॥ ७ ॥ तुम आदेशे हुँ गयो, पुरबाहिर परजात लाल रे ॥ पोल तणी माबी दिशे, दीगे थंन सुजात लाल रे॥सु॥ ॥ ए॥ईम सुणी राजा ऊठी, ते नर साथें खेह लाल रे ॥ थंन समीपें श्रावी, निरखें दृष्टि जरेय लाल रे ॥ सु० ॥ १० ॥ लोक सहित पुर राजियो, श्रावे पूजण थंन लाल रे, तेहवे तेह निमित्ति, बोल्यो म धरी दंन लाल रे ॥ सु० ॥ ११॥ श्रम शे जे ए थंनने, समज्या विण नर कोई लाल रे ॥ तो कुलदेवी कोपशे, करशे अनरथ सोई लाल रे॥ सु०॥ १५ ॥ राय प्रमुख पागा खिसे, मनमां बी
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