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( १९१) होता अह लाल रे || नूप जणे पूजो तुमें, पूज प्र भृति लेश् एह लाल रे ॥ सु० ॥ १३ ॥ विधि पूर्वक नाणी तिहां, पूजी बेठो ध्यान लाल रे॥जीपद मुख थी उच्चरी, मेले माया तान लाल रे ॥ सु० ॥१४॥ दोढ पहोर वासर चढे, सेवक नृप आदेश लाल रे॥ थंन उपामी पुर जणी, पावन थई सविशेष लाल रे॥ सु० ॥ १५ ॥ मंझपमा आमंबरे, थाप्यो आणी का र लाल रे ॥ षटकरणी पर शिला, कुमरे करावी त्यार लाल रे ॥ सु ॥ १६ ॥ उनी खोसे मंझमें, धरती मांहे बे हाथ लाल रे ॥ थंन निपुण निज सं चथी, लेश बांध्यो ते साथ लाल रे ॥ सु॥१७॥बे कर मुख उंचे रहे, शिला थकी ते थंन लाल रे ॥बा ण धनुष तेहथी ग्वे, पबिमने श्रारंन लाल रे॥सु० ॥ १७ ॥ सिंहासन नृपनां व्यां, दक्षिण उत्तर नाग साल रे ॥ गंधर्वे मांमयो तिहां, गावा मधुरो राग लाल रे ॥सु०॥ १ए ॥ थंन धनुष पूजावीने, नृप पासें ततकाल लाल रे ॥ कुमर कहे जयति प्रतें ते माव्या नरपाल लाल रे ॥ सु॥२०॥ नाणी नृपनी जीममां, देखी अवसर खास लाल रे|| जईबेगे गांध र्वमां, पलटी वेश प्रकाश लाल रे॥सुणा॥बेग जुप
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