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(२५५) नियट्ट ॥ ४॥ जाती मलया सुंदरी, राखुं किम जग दीश॥बुद्धिनको मुज ऊपजे, जेहथी फवे सदीस॥५॥
॥ ढाल शोलमी ॥ प्रणमी सद्गुरु पाय,
गायशुं राजीमती सतीजी ॥ ए देशी॥ एहवे अनल उदंग, वाजीशालामांहिं जागी जी ॥ उंचो जाल अखंम, दारुण गयणे लागीजी ॥१॥ निरखीने नरराज, सिझप्रत्ये पनणे इस्युं जी ॥ चोथु वली मुज काज, एक अड़े करवा जिस्युं जी ॥२॥ वारू पाट केकाण, एह बले हयशालमां जी ॥ काढो खेंची सुजाण, काम करो एक तालमा जी ॥ ३ ॥ रीज्यो हुँ तुज नारि, आजज सोंपुं ए घ मीजी ॥ जोतां जण दरबार, वलीयो मणिमय पाघ मी जी ॥४॥ निसुणी पुरजन लोक, नांखे ए नृप चातस्योजी ॥ पाम्यो शीक्षा रोक, तो वली श्म का पां तत्योजी ॥५॥ अति पुष्टाध्यवसाय, डोमे नहीं ए 3 मतिजी ॥करीको व्यवसाय, योग्य दीयुं शीक्षा रति जी ॥ ६॥ ध्यातो एहवं त्यांहिं, उछाहें बमणो थई जो ॥ पेसण हुतनुज मांहिं, वाजी शालें उन्नो जई जी ॥ ७॥ मनमां नृपने आप, निंदे आक्रोशे घणो जी ॥ बांध्यो कोपने व्याप, इष्ट संनारे आपणोजी॥
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