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________________ (२५३) ॥७॥ संजारे तेह देव, करवा सफल मनोरथाजी ॥ ऊंपावे ततखेव, दी पतंग पझे यथाजी ॥॥ हाहा कार करंत, शोक नख्या पुरजन तदाजी ॥ यांसू व रसंत, लोचन जिम जल वारिदाजी ॥१०॥ पाम्यो नूप प्रमोद, कुमर ऊपाणो देखीनेजी॥माणे हास्य वि नोद, सचिवने साथ विशेषिनेंजी ॥ ११॥ चढियो ह य सिहराज, अगनिथीनीसरिन तवेंजी॥ दीसे जि म सुरराज, आराह्यो उच्चैःश्रवेंजी ॥ १२ ॥ दीपे तेज अपार, दीव्य वसन चूषण धस्यांजी । ऊलहल ज्यो ति तुखार, अंगें साजनला नस्याजी ॥ १३ ॥ धौ रादिक गतिपंच, (१ धौरित २ वलितं ३ प्लुतकं । उत्तरकं ५ उत्तेजितं) नेदें तुरंग रमामतोजी ॥ तन विलसित रोमांच, जननें चित्र पमामतोजी ॥ १४ ॥ देतो हर्षविषाद, लोक लपतिने पालटीजी॥ मनमां अति आल्हाद, धरतो श्म कहे उबटीजी ॥ १५ ॥ अहो अहो तीर्थनी नूमि, एह डे वंडित दायिनी जी ॥ ज्वलित हुताशन धूम, फरसें जे अघ घायि नीजी ॥ १६ ॥ पमियो हुँ यहां आज, बीजो तुरं गम ए वलीजी ॥ बलतां सिद्वतां काज, एहवा थया माग टलीजी ॥ १७ ॥ जयकी अम अंग, रोग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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