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(२५४) जरा नहीं संक्रमेजी॥ नहीं हुवे मरण प्रसंग, अमर हुथा बिहुं रंगमेंजी ॥ १७ ॥ सांजली वायक एह,रा जादिक सवि जूजूयाजी ॥ बलवा अगनिमां तेह, प मवाने ततपर हूबाजी ॥ १५ ॥ जो जो प्रत्यद ख्या ल, तीरथ महिमानो शिरेंजी ॥ इथा बेहु निहाल, तीर्थ प्रनावें इंणी परेंजी ॥२०॥ आपणनें इंण वा म, तन होम्यां फल बे बहूज। ॥ धरता मोटी हो हां म, आव्या नर पम्वा सहजी॥१॥ बोल्यो सिद्ध विचार, रे रे क्षण एक पाखीयेंजी ॥ आणो घृत नि रधार, अगनि जूगतिशं पूजीयेंजी ॥ २२ ॥ श्राण्या घृतना कुंज, ॐ दह दह पच पच इस्योजी ॥नणतो मंत्र सदंन, आहूति बेमन उबस्योजी ॥३॥पहे लो पेशीश हिं, हुं श्म कही नृप पेशीजी॥ पंखें सचिव संबाह, जई नप पासें बेसीजी॥२४॥ कुमरें वास्या लोक, पमता अवर हुताशनेंजी ॥पम खो परखो स्तोक, श्राववा द्यो नृप सचिवनेंजी ॥२५॥ लागी वार विशेष, राय सचिव किम नावियाजी ॥ वेला तुमनें हो रेख, लागी नहीं जब आवियाजी ॥ ॥ २६ ॥ इंम पुरलोकना बोल, सांजलीने सिझ बो लीजी ॥ कारे नूख्या अटोल, अगनि पड्यो कोण
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