________________
(२५५) जीवी जी ॥ २७ ॥ अगनि पमि हुँ आज, सुरसा निध्य यीनीसयोजीबोली सकल समाज, वैर वाल ण रूमो कस्योजी॥ २७॥ फलियो अनय कुवृक्ष, नृ प मंत्रिसुत मंत्रिनेजी॥ सामंतादिक दद, बोट्याव ती आमंत्रिनेजी ॥ २५॥ राज्य निवाहक सिद्ध, हो जो राजा आपणेजी ॥ इम कही राजा कीध, महो त्सव आमंबर घणेजी ॥ ३० ॥ मान्यो जन सिझरा ज, पाले राज्य सुनीतिथीजी ॥महिपतियां शिरता ज, राखे जनपद इतिथीजी ॥३१॥ अमके विषम काम, लेजे सुछ संनारिजी॥ आनाखी सुराम, सिझें तेह विसर्जिजी ॥ ३५ ॥ चोथा खंमनोपंग, मलय चरित्रथी संग्रहीजी॥कांति विजय मन रंग, ढा ल शोलमी ए कहीजी ॥३३॥
॥दोहां ॥ श्राव्यो देशांतर थकी, तेहवे तिहां बलसार॥लई निरुपम नेटणुं, चली आवे दरबार ॥ १॥ नृप बेटी बेठे तिहां, दीठी मलया बाल ॥ मलयायें पण पेखीठ, सारथपति ततकाल ॥२॥एक एकनें उलख्यां, थातां नयणां नेट॥मलियां शत वर्षांतरें, चतुर न जूले नेट .॥३॥ मरतो तुरतज उठी, आव्यो मंदिर आप ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org