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(२५६) चिंते हैहै आवीयां, उदय महा मुज पाप ॥४॥ अ हो महोदधि परतमें, आव्यो एहनें डोमि ॥ दैवें किम ए नूपशु, मेली सांधा जोमी ॥५॥जे की, में एहनें, अनुचित करण अन्याय ॥ कहेशे ते जो नूपर्ने, तो मु ज मरण सहाय ॥ ६॥ ॥ ढाल सत्तरमी ॥ सीता हो प्रिया सीतारा परजात' प्रणमुंहो प्रिया प्रणमुं पग नाथे करी जी ॥ए देशी ॥
मलया हो प्रिय मलया कहे सुविचार, निसुणो हो प्रिय निसुणो जे श्राव्यो वाणीयोजी॥नामें हो नि य नामें ए बलसार, तेहज हो प्रिय तेहज पापनो प्राणी योजी॥१॥ मुजने हो प्रिय मुजने दीधी जेण, वि धविध हो प्रिय विध विध पुष्ट कदर्थनाजी ॥ राख्यो हो प्रिय राख्यो नो एण, मुजसुत हो प्रिय मुजसुत करतां अच्यर्थना जी ॥ २॥णी परें हो प्रिय ण परें प्रमदा बोल, निसुणी हो नृप निसुणी ततवण कोपीयोजी॥ साह्यो हो नृप साह्यो शेठ निटोल, परि कर हो निज परिकरशुं कांवें दीयोजी ॥३॥कीधी हो नृप कीधी क्रियाणे गप, वांकज हो वम वांकज तास जणावीयोजी ॥ चित्तमां हो ते चित्तमां विमासे आप, सार्थगहोइम सार्थप चिंता जावीयोजी ॥४॥
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