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(२५७) बूटण हो मुज बूटण कोई उपाय, दीसे हो नहीं दीसे नहीं कोई आशरी जी ॥आवे हो वलीयावे एक दाय, वखतें हो यदि वखतें थई आवे तरीजी॥५॥ एहना होनृप एहना वैरी दोय, परिचित हो मुज परि चित शूर नृपति धुरेंजी ॥बीजो हो वली बीजो शूर समोय, धींगमहोबल धींगमवीरधवल शिरेंजी॥६॥ जीती हो तेह जीती एहने ताम, डोमण होमुज बो मण विधि करशे बहीजी ॥ अमलख हो हवे अ मलख सोवन प्राम, परठी हो तस परठी जन मूकू सहीजी ॥७॥ लक्षण हो धर लक्षणधर गज आठ, आएया हो घर आएया परदेशां थकीजी॥ तेहनो हो वली तेहनो जणाची गठ, बूटीश हो हुँ बूटीश एह नेदें थकीजी ॥ ७ ॥ समजू हो एक समजू सोमो नाम, माणस हो निज माणस सवि समजावीनंजी ॥ मू क्यो हो तिहां मूक्यो बानो ताम, वणिकें हो तिण व णिके वीरधवल कनेंजी ॥ ए॥ जातां होमग जातां अधमग मांहि, मलिया हो बिहुँ मलिया बिहुं ते राज वीजी ॥ उर्गम हो अति पुर्गम तिलक गिरित्यांहि, नीषण हो जिहां जीषण जिहां रुघाटवीजी॥ १० ॥ निसुणी हो नृप निसुणी जूठी वात, एहवी हो धुर ए
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