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( २५८ )
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हवी जनमुखथी कहीजी ॥ पछी हो तिए पछीपति किम जाति, जीमें दो वन जीमें मलयानें ग्रहीजी ॥ ११ ॥ व्या हो तिहां आव्या बेहु नरिंद, निज निज हो जन निज निज जनपदथी वही जी ॥ डुर्ज य हो तेण दुर्जय भीम पुलिंद, रमतो हो रण रमतो रण बांध्यो ग्रहीजी ॥ १२ ॥ जोतां हो तिहां जोतां मलया बाल, दीवी हो नहीं दीवी नहीं किए थानके जी ॥ वलीया हो नृपवलीया नृप लिए काल, मलियो हो जई मलियो सोम अचानकेंजी ॥ १३ ॥ वीरप हो नृप वीरपनो आदेश, पामी हो वर पामी वर तिम वनवेजी ॥ सार्थप हो तेह सार्थपनो संदेश, सुणतां हो नृपसुतां अंगीकरे सवेजी ॥ १४ ॥ श्रधुं दो ध न धुं देतो वीर, आखे हो विधि याखे शूर प्रत्यें ह सीजी ॥ शूरो हो नृप शूरो नृप शमीर, लोनें हो बहु खोजें वात पदे धसीजी ॥ १५ ॥ नृपकुल हो एह नृपकुल साधें द्वेष, चाल्युं दो नित्य चान्युं यावे या पणजी ॥ बेठो हो कोइ बेठो नूतन एष, तेहने हो हवे तेहने दवे दणशुं रणेंजी ॥ १६ ॥ सर्वस्व हो तस सर्वस्व लेशुं खूंटि, सार्थप हो वली सार्थपनें मूकावशुंज ॥ थाशे दो श्रम थाशे यशनी बूटि, रिनो हो वली रिनो
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