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( ६७ )
॥ ढाल पहेली ॥ पनामारु यौवन आईजी पूर ॥ देश ॥ ॥ ॥ यौवन रस पूरें चढी रे, नवल गोरीरो गात ॥ जलकें करे बिचंद्रिका रे, जाणु आसो पूनिमनी रात ॥ १ ॥ कन्यावारू यौवन आईजी पूर, राजी रूपे लूटी लीधी रति राणी ॥ कन्यावारू यौवन आईजी पूर ॥ ए
कली ॥ वेणि निहाली शामली रे, नाखुं नागिण घोल ॥ वदन कमल रस लालचें रे, मानु बेठी नमरनी जेल ॥ क ० ॥ २ ॥ जाल जनुं जाग्यें जतुं रे, दीपे सबल सुघाट | पुण्य रेख लिखवा जणी रे, विधि माग्यो क नकनो पाट || क० ॥ ३ ॥ वीब मिया मृगनां जिस्यां रे लोचन तास वखा ॥ तीखाई विधिना गमी रे, जिम सर चाढ्या खुरसाए ॥ क० ॥ ४ ॥ सकन मन धारा जिसी रे, नासा सरल सुहाय ॥ चांचें लाज्या सूमला रे, ते लखि लखि वनफल खाय ॥ क० ॥ ५ ॥ अधर धरे रंग रातको रे, नवपल्लव सुकुमाल ॥ वमवानल संगति मिसें रे, मानु पेठी विद्रुम जाल ॥ क० ॥६॥ बिहु पख धारे या तिकला रे, तस मुख चंद्र हसाय ॥ निरखी खिसाणो चंद्रमा रे, नित्य उदय लही खिसी जाय ॥ क० ॥ ७ ॥ सरल सुहाली बांहमी रे, तेह लु ढावे बाल || जिनव उपे जोकले रे, नमी घ्यावी क
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