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________________ (६७) स्पतरु माल ॥ कण ॥॥ गोल कग्नि कंचुक कश्या रे, कुच युग एम शोनाय ॥ काम नृपति जीतवान णी रे, शहां तंबू दीधा थाय । क० ॥ ए॥ उदर स कोमल पात@ रे, जेहQ पोयण पान ॥ जलकारें जाण्यो पमे रे, आत कनक तबकने वान ॥कणारा गजे सुंदर वाटलो रे, जीणो केमनो लंक ॥ देखतही वन गिरि गया रे, मृगराज थया साशंक ॥कण॥११॥ जंघ युगल दीपे नलों रे, अचला कदल। खंन ॥ म दन मालिये सिंचिया रे, नरी लावण्य अमृत कुंज॥ ॥क० ॥ १५ ॥ ऊंचा मांसल सुंदरू रे, पग काबब अनुहार ॥ तस तुलना करवा नणी रे, जाणे कम लीयो अवतार ॥ कण् ॥ १३ ॥ कोमल कर पग आं गुली रे, ऊपर नख दीपंत॥माणिक मंमित लेखणी रे, रति पतिनी एहवी न हुंत ॥ कण॥१४॥ पगें जांजर जम जम करे रे, कटि मेखल खलकार ॥ लक्ष्मी पूज सोहामणो रे, तस कंठे बाजे हार ॥ कण् ॥ १५ ॥ कर कंकण मणिमय जड्या रे, काने कुंमल जोम ॥ शोहे सवि शिणगारथी रे, गज गामणियां शिर मो म॥ क० ॥ १६ ॥ निपुणपणे दिन निगमी रे, वर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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