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(ए) सायक ते बाल ॥ नाखी बीजा खमनी रे, श्म कांतें पहेली ढाल ॥ क० ॥१७॥
॥दोहा॥ हवे अ एह नरतमां, पुरवर पुहवी गण ॥ सूरपाल नामे तिहां, राज्य करे खिति जाण ॥१॥ पटराणी पदमावती, रूप शील गुण वास ॥ सुत सुं दर तेहने हर्ड, नाम महाबल तास ॥२॥ विद्या सा धक कोश्क नर, सेव्यो कुमरे एण ॥ रूप पलट्टण कारणी, विद्या दीधी तेण ॥३॥ नाग दमण व्यामो हनी, नूत दमणि वशितंत ॥ मंत्र यंत्र कार्मण प्रमु ख, शीख्यो कुमर अनंत ॥४॥ सूरपाल नृप कारजें, खासा श्राप खवास ॥ मलणु आपी मोकले, वीर धवल नृप पास ॥५॥ कुमरे पण नृप वीनवी, की, साथ प्रयाण ॥ केतक दिन चंद्रावती, पोहोता सुगुण सुजाण ॥६॥मूकी मुहगो लेटणो, उचित करी व्यव हार ॥ नृप आगल बेग सहु, नाखे कुशल प्रकार ॥ ॥ ७॥ निरखी नूप कहे श्श्यो, ए कुंण तरुणोजेह ॥ एक सचिव मायो कहे, मज लघु बांधव एह ॥ ॥ कही काम निज स्वामीनां, ऊठ्यो तेह प्रधान॥ नूप दत्त मंदिर जई, उतारथा शुलथान॥५॥राज कुम
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