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________________ (६६) लिका रे दांजी, वाधे दिनदिन वधते नेह ॥ ए० ॥ २१ ए० ॥ २० ॥ स० ॥ सर्वगाथा ॥ २४२ ॥ ॥ चोपाइ ॥ खंगखं रस बे नवनवा, सुणतां मीठा साकर लवा || निर्मल मलयचरित्र जग जयो, प्रथम खंग संपूर्ण थयो ॥ १ ॥ ॥ इति श्री ज्ञानरत्नोपाख्यानापरनाम निमलय सुंद रिचरित्रे पंमितकांति विजयग शिविरचिते प्राकृतप्रबंधे मलयसुंदरी प्रशवनो नाम प्रथमः खंगः संपूर्णः ॥ १ ॥ ॥ अथ द्वितीय खंड प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ स्वस्तिश्री गुरु जिन गिरा, गणधरने करजोकि ॥ बीजो खंग कहुं हवे, छालश निद्रा बोमि ॥ १ ॥ धुर मीठी जो होय कथा, कथक वचन निर्दोष | मीठी सजा सुणे वली, तो होये रसनो पोष ॥ २ ॥ फोकट फोरवे चातुरी, विचमा करे बकोर ॥ रस गंज विकथा करे, माणस नहीं ते ढोर ॥ ३ ॥ तेहजणी मन थिर करो, मूकी अलग धंध ॥ कहेतां श्रोता सांजलो, सरस कथा संबंध ॥ ४ ॥ लदी हवे कुमरी शुभग, यौवन पूर अनंग ॥ का काम समझना, उगमें विविध तरंग ॥॥॥। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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