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(६५) हांजी, ते पागल नूपति अविलंब ॥ ए० ॥ १४ ॥ मया करी मलया सुरी रे हांजी, आप्यां मुजने बे सं तान ॥ ए० ॥ तस नामे होजो बिन्हे रे हांजी, मल य सुंदरी अनिधान ॥ ए॥ १५॥ पंचधाश् पालीज ता रे हांजी, कुमर कुमरी वधे ससनूर ॥ ए ॥ दि नदिन नवल कला ग्रहे रे हांजी, बीज तणो जिम चंड अंकूर ॥ ए ॥ १६ ॥ हसण बुठण चलणादि के रे हांजी, जिम जिम साधे शैशव योग॥ ए॥ति म तिम नृप राणी लदे रे हांजी, हर्ष मनोहर फल संयोग ॥ ए॥१७॥ निरुपम योवनने रसें रे हां जी, शिशुता रस मूके आस्वाद ॥ ए॥ कालें उचि त कला ग्रहे रे हांजी, बुध संगें निज मति उनमाद ॥ए॥ २७ ॥ किणदिन मदगज राजयी रे हांजी, खेल करे पण नृप सुत बांध ॥ ए० ॥ ख्यालकरे हयथी कदे रे हांजी, खड़ रमें नाखें सरसांध ॥ ए॥ १ए | कुमरी पण जमरी परे रे हांजी, वीं टी परिकर अति अनुकूल ॥ ए॥ वनवामी आरा ममां रे हांजी, रमण करे यौवन मद जूल ॥ ए ॥ २० ॥ कांतिविजय बुद्ध शोलमी रे हांजी, ढाल कही उत्सवनी एह || ए॥ पुण्यथकी जय मा
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