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॥ दोहा॥ ॥ मलया महबलनुं तिहां, निसुणी चरित विशा खानव निस्पृह परषद हई, धरी वैराग्य रसाल ॥१॥ दंपति सहगुरु मुखथकी, निसुणी आप चरित्त ॥ अति वैरागें श्रादरें, बारे व्रत सुपवित्त ॥२॥ मुनि सेवा करशुं सदा, आणी जक्ति विशेष ॥ ग्रहे अनि ग्रह एहवो, सुगुरु मुखें निष॥३॥ केता संयम आ दरे, श्रावकनां व्रत केय ॥ नमक नावी केई हुआ, रा गादिक नाखेय ॥४ ॥ चरित आप संताननां, सांन लीने बिहुँ नूप ॥ नवनिरुक थई ऊमह्या, संयम ग्र हण अनूप ॥ ५॥ ॥ढालत्रीशमी। जिनवचनें वैरागीयोहो धन्ना॥ एदेशी।
॥जिनवचनें वैरागी हो राया, इंम कहे बे कर जोम ॥ राज्य चिंता करि बापणी हो सामी, तुम पासे मन कोम रे हो मोरा सामी, संयम लेगुं बे ॥ १॥ संयम रस पीयूषमां हो सामी, केलि करण म न इंस॥ विषयादिक लागे तिसा हो सामी, जेहवा कटुक थल तूसरे ॥ हो ॥२॥ अवसरविद नाणी कहे हो राया, माप्रतिबंध करेह ॥ तहत्ति करी जव्या बिन्दे हो राया,आव्या निजनिज गेह रे॥ होण्॥३॥पो
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