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(शए६) ट विविध प्रकारें रे॥हु० ॥७॥ऊमपी मुनि रयह रणुं ली ,मलयायें तिम वली दीधुं रे॥दु०॥ तेहथी पुत्र वियोग लहीने, फरी पामी संयोग बहीने रे॥ हुए ॥७॥करी उपसर्ग सुसाधु विराध्यो, अंतें तिम जे आराध्यो रे ॥ हु० ॥ तेहिज हुँ उद्मस्थ टलीने, हुर्ड केवली तपसीने रे ॥हु०॥ ए॥ बिहुँ जणनो बीजो नव एही, महारे नव एकज तेही रे॥ हु०॥ वचन सुणी मनमां कमखाणो, वली बोल्यो श्म महीराणो रे ॥ हु० ॥ १० ॥ जगवन् कनकवती तेम असुरी, तव वैर विरोध प्रसरी रे ॥ हु० ॥ करशे एहुनें वली कांई मा, किंवा वैर पुरातन घा रे ॥ हु० ॥११॥ सूरि नणे असुरी कर तामी, गई वैर विरोध विजांनी रे ॥ हु० ॥ कनकवती नमती हां आवी, विषमो एक दाव जपावी रे॥हु ॥१२॥ एक उपञ्व करशे कोपें, तुज सुतनें वैराटोपें रे॥ हुए ॥ कनका असुरी पुरित पुरंता, जमशे लव काल अनंता रे ॥ हु० ॥ ॥ १३ ॥ मलया महबलनो लव लांख्यो, एहमां अव शेष न राख्यो रे ॥ दु०॥ गणत्रीशमी चोथे खंमें, कांतें कही ढाल उमंगें रे ॥ हु० ॥१४॥
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