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तो शिव ध्यान के, मास दिवस तप जावीयो॥॥ तस सांजलि हो महिमा निरपाय के, लोक सकल आवी नमे ॥ केश् चरचे हो नक्तं करी पाय के, केशर चंदन कुंकुमे ॥३॥ केताएक हो सेवे तस पास के,अहे निशि शिष्य जेम तेहनां ॥ केताएक हो स्तु ति मांगी खास के, लोक ते गहेला नेहना ॥ ४ ॥
आमंत्रे हो केश जोजन हेत के, पण नावे तेहने घ रे॥तुज बांधव हो एकदिन सुचि चेत के, पारण काजे मुंहतरे ॥५॥ ते तापस हो मानी नृप वयण के, श्राव्यो पारण कारणे ॥ नृप बोले हो श्म विकसित नयण के, अंब फल्यो श्रम बारणे ॥ ६ ॥ ते बेगे हो जिमण जणी वार के, मुजने श्म नूपें कह्यो । जो नाखे हों तुं पवन प्रचार के, ए तापस पुण्ये ल ह्यो ॥ ॥ में जुगतें हो वींज्यो झषी वाय के, रागें श्रागें बेसके ॥ जाणंती हो करुणानिधि आज के,प्र सन्न करुं दिल पेसके ॥ ॥ ते पापी हो मुज रूप निहाल के, पाखंमी चित्तमा चल्यो ॥ चाहतो हो मु ज संगम व्याल के, कामाकुल मन टखवल्यो॥ ए॥ निज थानक हो पोहोतो दृढ शोग के, शाल वस्यो मन आकरो ॥ संकल्पं हो मलवानो योग के, योग
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