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में प्रगट करूं नहीं, श्रतम गत अवदात ॥ २ ॥ इम निश्चयकरी चित्तसुं, पूढे वली ससनेह ॥ पढी थ्यो सुं साहेबा, हितकरी सर्व कहेह ॥ ३ ॥ कुमर कहे हुं दुःख जरयो, फरियो नगर अशेष ॥ विस्मय सहित कुटुंबनी, व्यापि चिंत विशेष ॥ ४ ॥ शून्यपुरी सब निरखतो, नृपकुल पोहोतो जाम ॥ राजभुवन रमणि यद्युति, उपरें चढी ताम ॥ ५ ॥ दीन वदन विष्ठा य तनु, करती चिंत अपार ॥ बेटी दीठी एकली, ति हां वम बांधव नार ॥ ६ ॥ में बोलावी हेजसुं, या वी साहमी धाय ॥ नयणे श्रावण जमी लगी, हीयमे दुःख न समाय ॥ ७ ॥ मधुर लपा मुज आगलें, मू के बेस पीठ ॥ वात विगत पूढण जणी, हुं तस नि कट बईठ ॥ ८ ॥ रीति की सी एह नगरीनी, पुरव स्थि त किमया ॥ म पूढयो में ततखिणें, बोली वा त विराम ॥ ५ ॥
ढाल सातम । ॥ मोरासाहेबहो श्री शीतलनाथ के । एदेशी
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॥ मोरा देवर हो सुए दुःखनी वात के, कहेतां द रुं थरहरे | वाल्हाने हो या अवदात के कया वि कहो किम सरे ॥ १ ॥ एक दिवसें हो ई पुर उद्यान के, तापस कोइक श्रावीयो ॥ रक्तांबर हो घर
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