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________________ (२०) रे, थायो मध्य बाजार ॥ लोजाकर लोजनंदीनेरे, हाट गयो सुविचार ॥ सु०॥ १७ ॥ दक्षपणे बेहु बां धवें रे, हरी लीधो मुज मन्न ॥ हलीमली तस घर हुँ रह्यो रे, विश्वासें निसदिन्न ॥सु०॥ १५ ॥ ते तुं बी थापण धरी रे, जाणीसाचा शाह ॥केता दिवस विलंबीयो रे, पुर पेखणरी चाह ॥ सु०॥२०॥ज ननी दर्शन उमह्यो रे, कीधो चालण संच ॥ पहेलो शेठे जाणीयो रे, तुंबीनो परपंच ॥ सु॥१॥तुंबी मागी ततखणे रे, करता निजपुर सिफ॥ लोलग्रसित बेबांधवें रे, कूमो उत्तर दीध॥सु०॥२॥कही न शकुं जोरें किस्युं रे, दीप्योक्रोध अपार ॥जुगतो कूमाने शी रें रे, कीधो में प्रतिकार ॥ सु० ॥२३॥ आयो क्षण पुर वेगशुं रे, दीगे शून्य समग्र॥मुज मन ताप वधा रणी रे, पेठी चीता उदग्र॥सु० ॥ २४ ॥रति नाठी पुःख उमट्यो रे, विरु विरह निपट्ट ॥ ढाल बही कांती कही रे, कुमर वचन परगट्ट ॥ सु० ॥ २५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ गुणवर्मा चीते इस्युं, ए नर तेहिज होय ॥ वि घाबले जणे कोप करि, बांध्या बांधव दोय ॥१॥ समग्रपरे जाणुं नहीं, ज्यां लगे सघली वात ॥ त्यां स Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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