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सकल मूक्यो परो ॥ १० ॥ निशि आव्यो हो कर ले ई गोह के, नांखी मंदिर उपरें । करी संचो हो चढी ने तव जोह के, चोर परें गृह संचरे ॥ ११ ॥ मुज पासें हो आव्यो ततकाल के प्रारथना मांगी घणी, ॥ बीवरावे हो करतो चकचाल के, शक्ति देखाने या पणी ॥ १२ ॥ प्रतिबोध्यो हो में दृढता काज के, पा पता फल दाखीने, ते बोले हो विरमुं नहीं याज के, काम सिद्धा विण चाखीनें ॥ १३ ॥ म मसलत हो करतां सवि तेह के, नृप सुणी आव्यो बारणे ॥ मुं नि दीगे हो उलखीयो तेह के, घर तेड्यो जे पारणे ॥ १४ ॥ फिट पापी हो धूरत शिरदार के, काम करे तूं एहवा || तुज प्रगट्यो हो ए पाप अपार के, फल पामीस हवे तेहवा ॥ १५ ॥ एम कहीने हो बंधाव्यो तेम के, राजायें सेवक कने ॥ अपराधे हो गोधाने जे म के, जी के जूने तेहने ॥ १६ ॥ परजातें हो फेरयों पुरमाहिं के, सेरी सेरी कूटता, खर चाढ्यो हो दुःख पामे त्यांहिं के, चट चट आमिष चूटता ॥ १७ ॥ निं दितो हो राजायें जोर के, पुरजन वरम इसी जतो ॥ तामी तो हो जमि चिहुं तर के, मलमूत्र लिंची जतो ॥ १७ ॥ याकोस्यो हो सविलोक विमंब के, चोर मा
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