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(२४) रे ते मारी ॥बलपुरयो हो योगिणना तुंब कें, नूपे काम इस्यो कीयो॥१॥ ते ऊपनो हो राक्षस अव सान के, निज श्रातम विद्या करी ॥ संजारी हो पूर व अपमान के, वैर जाग्यो मत उसरी ॥ २०॥ अ तिनीषण हो विरुळ विकराल के, कोपाकुल गलगा जतो ॥ वलगाड्या हो कंठे विष व्याल के, गिरिवर वन तरु जाजतो ॥१॥ मुख वमतो हो विश्वानल जाल के, पिंगल लोचन हन जस्यो॥ कर लीधो हो तीखो करवाल के, जाणे गिरि को संचरयो॥२॥ धस मसतो हो आव्यो ततकाल के, राजाने इणीपरें कहे ॥ मुज मारक हो पापी नूपाल के, किम सातायें तुं रहे ॥ २३॥ तुज बांधव हो सरणे गयो तास के, तोपण जटकसुं मारियो, पापीयमे हो श्रावी एक शा सके, नृपनो वैर उतारियो ॥ २४ ॥ जय देखी हो पु रना सविलोक के, जीव लेई नासी गया ॥ केशमा रथा हो करता घणुं शोक के, पण नावी पापी दया ॥२५॥ पुरुषनो हो देखी जयनूत के, नासंती मु जने ग्रही। श्म बोस्यो हो धरी राग प्रतीत के, नऊ जावे किहां वही॥२६॥ मजसाथें होलोगव सखजाग के, मत बीहे तुं कामनी ॥ रहे मंदिर हो ए सरिखो
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