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(२१५)
ढाल बावीशमी ॥ वणजारानी देशी॥ ॥ चित्त बूजो रे कांई बांगो मोहनी निंद, जागो घि षयघारिणीथकी, नवि बूजो रे ॥चि॥ एतो विषमो काल पुलिंद, बल जोवे बानो तकी ॥०॥१॥चि ॥ थेंतो सांकमे उरामांही, सूता काल अनादिना ॥ न ॥ चि० ॥ बोध न पाम्योत्यांहिं,खोया फोकट के ६ दिना॥न० ॥२॥चि०॥वरजो विषय कषाय, ए हमा स्वाद न को अ॥०॥चि॥रहेशो जो ल पटाय, परतावो होशे पडें ॥न० ॥३॥चि॥वों हिंसा पूर, सत्य वदो परधन तजो।नचि०॥ मो मैथुन नूर, परिग्रह मूर्नामति जजो |न०॥४॥ ॥ चि०॥क्रोधादिक रिपुचार, संगति एहनी बांमजो ॥ ज० ॥ चि० ॥ प्रेम नाव संचार, तजजोद्वेष नमा मजो ॥न ॥ ५॥ चि०॥ कलहने अन्याख्यान, चा मी रति अरति तजो ॥नः॥चि०॥पर परिवादादा न, न करो माया मषा रजो ॥ न॥६॥चि० ॥ मि थ्यामति मय साल, काढी नाखो चित्तथी॥ज. ॥ ॥ चि० ॥ कुगति तणा ए जाल, गण अढारह नित्य थी॥ न०॥ ॥ चि०॥जीतो इंजिय गाम, मन मां कमबुं वश करो ॥ ज० ॥ चि॥ वावो वित्त सुगम,
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