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( २५६)
शील सुरंगो आदरो ॥ ज० ॥ ८ ॥ चि० ॥ परचो योगा ज्यास, यह निशि जावो जावना ॥ ज० ॥ चि० ॥ मुगति दीये विलास, कारण एता पावनां ॥ ज० ॥ ए॥ चि०॥ क त्रिम ए संसार, तनधन यौवन का रिमां ॥ ज० ॥ चि० ॥ जात न लागे वार, जिम कायरनो शूरमां ॥ ज० ॥ १० ॥ ॥ चि० ॥ कुण के हनो जगमांहि, स्वारथनां सहुको सगां ॥ ज० ॥ चि० ॥ स्वारथ विण नर प्रांहि, वालानें श्रापे दगां ॥ ज० ॥ ११ ॥ चि० ॥ पुण्याने वली पाप, एहि ज साधें वशे ॥ ज० ॥ चि० ॥ जोगवशे दुःख आ प, तिहां नहिं को वेचावशे ॥ ज० ॥ १२ ॥ चि० ॥ म त जिम बाण, नरजव धर्म विना तिस्यो ॥ ज० ॥ || चिं० ॥ सुलहा जवजव प्राणि, धर्म नहीं मलशे इ स्यो ॥ ज० ॥ १३ ॥ च० ॥ दश दृष्टांत पुलंन, मा नव जव पुण्यें लही ॥ ज० ॥ चि० ॥ पाम्या योग सु लं, सफल करो हवे ते वही ॥ ज० ॥ १४ ॥ चि०॥ थावो अति उजमाल, अवसर फिर नहीं शे ॥ ज० ॥ चि० ॥ लाख गये जंजाल, धर्म मारग वि च थावशे ॥ ज० ॥ १५ ॥ चि० ॥ चेतो चित्तमां या प, कहेशो पढ़ी जाएयुं नहिं ॥ ज० ॥ चि० ॥ ॥ टालो जव संताप, शिव कारण संयम ग्रही ॥ ज० ॥ १६ ॥
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