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(१८३३)
विनय मुज पन्नग अँजु, नक्तें वश होय देव
लो ॥ ० ॥ दे० ॥ ६ ॥ कीधो ते खमजो लो ॥ ता, इम जाणी समजो लो || ० || दे० ॥ ७ ॥ नि सु नृपति वीनति, मलया हि मूक्यो लो ॥ श्र० ॥ नृप पयपात्र धयुं तिहां, पीवा जइ द्वक्यो लो ॥ ० ॥ दे० ॥ ॥ संतोष्यो पयपानथी, नरपति या देशें लो ॥ ० ॥ गारुमीयें पाठो ग्रही, मूक्यो गिरि देशें लो ॥ ० ॥ दे० ॥ ए ॥ नृपति पूबे नारीनें, जोतां जप पासें लो ॥ ० ॥ नरथी नारी किम हुई, एह कौतुक जासे लो ॥ ० ॥ दे० ॥ १० ॥ कुंण बे किम यावी इहां, केहनी तुं बेटी लो ॥ ० ॥ रहस्य को सवि चितथी, अंतर पट मेटी लो ॥ ० ॥ दे० ॥ ११ ॥ मलया एहवं चिंतवे, मूल रूप ए उ लट्धुं लो ॥ ० ॥ जाल अमृतथी मांजतां, पहेलुं पण उलट्युं लो ॥ ० ॥ दे० ॥ १२ ॥ रूप ए विष रात को कम बदलाएं लो ॥ ० ॥ हार लो पीयु करतो, चरिज इहां जाएं लो ॥ ० ॥ दे० ॥ १३ ॥ कारण ए मुज पीउनां, विए कारण सीधां लो ॥ ० ॥ कारणें नाग थई तिणें, कारज शुं कीधां लो ॥ ० ॥ दे० ॥ १४ ॥ समजण मुज पमती नथी,
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