SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२११) माटे ॥ भृत नाणे जो तृप्ति नहीं तो, शुं एवं कर चाटे ॥०॥६॥काननना तृणमांहे तुं सूतो, आग उशीसें सलगे॥शीखमली साची हित जाणी, रहेनें मुजथी अलगें। ॥७॥हीये विचारी निरख रे घेला, महि लामां शुंराचे॥दीसे चटुक कटुक परिणामें, इंडायण फल साचे ॥ ||॥ अनृत वचनगृह कंद कलह मुं, मोक्षपथिक पग बेमी ॥ अति यासंगें अबला विलगी, नाखे कुगति नथेमी ॥ ॥ ए॥श जन ने पण वलगी खटके, जिम खर पूंछे डांची ॥ परदा रा काराघर सरखी, निरखी रहो मत राची ॥ ॥ ॥ १० ॥ कामदेवने आहुति देवा, नारी हुताशन कुं मी ॥ कामी धन यौवन त्यां होमे, देता निजतनु पिं मी॥ ० ॥ ११॥ न्यायी नृप जिम जनक प्रजानें, पाले तिम अति रागें ॥ तुं नय बंमी अनय मग हींगे, तो कहीयें को आगें ॥ २० ॥१५॥ चूकवतां 3 कर जगमांहिं, साचो शील सतीनो॥ ग्रहतां हुये पु लहो जीवंते, हग विष नाग नगीनो ॥ ॥१३॥ सत्यवती कोपे जे माथे, नस्म करे तस देहा || तेह न णी अलगो रहे समजी, नाखे कां कुल खेहा ॥॥ ॥१४॥ वंश विशाल विमल कुल ताहारु, नरियो गुण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy