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(१२) संदोहें। तो कांकुमतिप्रसंगें नोला, पररमणीशु मो हे॥३०॥ १५॥ समजाव्या बहु नय देखामी, रा मायें रस नरियो । महा कलुष परिणतिथी धीगे, तो पण नवि उसरियो । ॥ १६ ॥ ए नारीनुं जोरें पण हुं, मूकीश शील विखमी ॥ सुखें करजो नस्म वपुष ए, इंम चिंति थिति बंमी ॥ ३० ॥ १७॥ विल ख वदन कंदर्प नरेसर, राज काजमां वलग्यो ॥ प्र मदा मिलन महोत्सव वन्हि, हृदय सदनमा सलग्यो ॥ ॥ २७॥ निर्जल देश पस्यो जिम माबो, तिम नृप विरही तलपे ॥ दृष्टि प्रसंगादिक मन्मथनी, दशे दिशा वशि विलपे ॥ ॥१५॥आवर्जन करवा नृप तेहनें, वस्तु नवल नव मूके ॥ सती शिरोमणि वस्तु विशेष, सुपनंतर नवि चूके॥ ॥२०॥वदन थयुं जां मन पसख्या, चिंता जलधि तरंगा॥ मरणोन्मु ख मलया थई बेठी, राखण शील सुरंगा ॥ ॥ ॥ २१॥ धन्य धन्य शील धरे संकटमां, जे निज मन थिर राखी ॥ ढाल पांचमी चोथे खंमें, कांतिविजय बुध नांखी ॥ ० ॥ २५॥
॥दोहा॥ ॥अन्य दिवप्त एक सूमलो, तरुवर को तका
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