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( २१३ )
ऊड्यो जाय गासें राय ॥
य ॥ मुख उवि फल सहकारनुं, गयणें ॥ १ ॥ चंचथकी ज़ारें खिस्युं, जिहां नथी नृपना कमां, ते फल परियुं व्याय ॥ २ ॥ चकित चित्त करतल ग्रही, चिंते एम नरपाल ॥ अव सर विण किहांथी परुधुं, ए सहकार अकाल ॥ ३ ॥
बे एक पुरपरिसरें, बिन्नटंक गिरितुंग ॥ तास विषम शिखरें सदा, वनना अंब अनंग ॥ ४ ॥ श्राएयुं तिहांथी सूमले, ए फल मधुर मलूक ॥ लची मधु॑ तस वदनथी, जारें एह अचूक ॥ ५ ॥ श्रपुं को व वन प्रत्यें, के रोगं आप ॥ क्षण एक एम. विमा सतो, नूपति थापे थाप ॥ ६ ॥ कहे सुटने फल ग्रही, पोहोचो मलया पास ॥ अंतेरमां आणजो,
पीति विशवास ॥ ७ ॥ नूपति वचन तथा क री, सुजट विटल प्रसिद्ध ॥ आदरशुं तेणें जई, मल यानें फल दीध ॥ ८ ॥ विणकालें किम संजवे, ए फल अनुपम आज || विस्मित म नृपजणथकी, ली ये अंब तजी लाज ॥ ७ ॥ सत्यापी फल पीनें,
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थापी नूपति धाम ॥ उल्लापी कहे रायनें, पापी नि जकृत काम ॥ १० ॥ महाडुःखें दिन नीगमे, तकत
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