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________________ ( २१४ ) नृपति निशि दाव || एहवे समय विपाकथी, अस्त हू दिन राव ॥ ११ ॥ ॥ ढाल बही ॥ बदलीनी देशी ॥ ॥ मलया एम विमासे, एतो मूंको मुज मन जासे हो । नूपति मतिही णो ॥ श्राणी हुं निज आवासें, कां न चढें मन विशवासें हो ॥ भू० ॥ १ ॥ सुंदर शील वी गोशे, आऊं नें अवलुं न जोशे हो ॥ ० ॥ शाख लाखीणी खोशे, तो सूल किश्यो हवे होशे हो ॥ नू० ॥ २ ॥ कामी होये निर्लजा, तस शी जगिनी शीज का हो ॥ नू० ॥ बांधे चावी धजा, नवि जाणे ख जा अखता हो ॥ ० ॥ ३ ॥ इंम धारी वेणी टंटो ली, काढी कचमांथी गोली हो ॥ जू० ॥ आंबा रस मां चोली, बींदी करी सूधी घोली हो ॥ ० ॥ ४ ॥ नर हू फीटी नारी, दिव्य रूप कला संचारी हो ॥ ॥ ० ॥ सुंदर यौवन धारी, जाणे मन्मथनो अवता री हो ॥ ० ॥ ५ ॥ बेठो मंदिर जालें, तेजर ख्या ल निहाले हो ॥ भू० ॥ सूमो जिम रह्यो थालें, सुर तरुनी माल विचालें हो | जू० ॥ ६ ॥ अद्भुत रूप निहाली, घई राणी सवि दोजाली हो ॥ ० ॥ जा णे संचे ढाली, इम थंजी रही विरहाली हो ॥ ० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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