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शेरे, आराधि जिनधर्म ॥ का० ॥ १० ॥ सदगुरु वचनें सहदे, साधुं कहे रे, भूपादिक जविलोग ॥ ॥ का० ॥ वेगवती जब सांजली, कहे एम वली रे, अहो हो जावी जोग || का० ॥ ११ ॥ लोक कड़े एक एक प्रत्यें, जूर्ज म बतें रे, पाल्यो जननी प्रेम ॥ का० ॥ दाव्यो पप लोहारिकें, अधिकाधिकें रे, वानी धारे देम ॥ का० ॥ १२ ॥ मलया चरिच सुहामं, रलियाम रे, कदेतां बाधे प्रीति ॥ का० ॥ ढाल वीशमी ए सही, मन गह गही रे, कांतिवि जय शुज रीति ॥ का० ॥ १३ ॥ ॥ दोहा ॥
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॥ पूढे वली नर राजिर्ज, जगवन् करुणावंत || मलया महबल पूर्वजव, जांखो स्वामी सुतंत ॥ १ ॥ बालायें वली महबलें, श्यां श्यों की धां कर्म ॥ जे थकी यौवन समे, साधां दुःख दिए मर्म ॥ २ ॥ सूरि जणे महीपति सुणो, थिरकरी चित्र बनाव || मलयाने म हबल तपा, जांखुं गत जवजाव ॥ ३ ॥
ढाल चोवीशमी ॥ हस्तिनागपुर वर जलु, ॥ जिहां पांगु राजा सार रे ॥ ए देशी ॥ ॥ पुहवी गए तुज पुरखरें, एक गृहपति हुतो स
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