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________________ (290) ॥ का० ॥ गाढें नवपद त्यां जयां, श्रवणें सुण्या रे, मीनें मनमां तूठ ॥ का० ॥ ३ ॥ ईहापोह करया थकी, मीनें चकी रे, दीगे गत जव व्याप ॥ का० ॥ ग्रीवा वाली नि रखतां, मन हरखतां रे, वाध्यो प्रेमनो व्याप ॥ का० ॥ ॥ ४ ॥ जोतां मलया उलखी, पुत्री दुःखी रे, लागो विचारण मीन ॥ का० ॥ हैहै दुःखें अवघमी, एहमां पकी रे, दुर्विधिनें आधीन ॥ का० ॥ ५ ॥ मुजथी कां ई न नीपजे, नवि संपजे रे, उपकारकनां काम ॥ का० ॥ तोपण मूकुं हां थकी, रुरुं तकी रे, जिहां होवे वस तीनुं गम ॥ का० ॥ ६ ॥ यदपि कदाचित् ए वली, दुःखथी टली रे, पामे वचनं योग ॥ का० ॥ ईम चिं ति तेथे माडलें, धरी पाउलें रे, मूकी थल संयोग ॥ ॥ का० ॥ ७ ॥ कंधर वाली निरखतो, एहनें कितो रे, दुःख धरतो ऊख राय ॥ का० ॥ नेहें हियमे सूरतो, जल पूरतो रे, पाठो जलमां जाय ॥ का० ॥ ७ ॥ गतजव देखी जागीयो, सोजागीयो रे, माछो पामी विवेक ॥ का० ॥ फास आहार आहारतो, मन धारतो रे, श्री नवपदनी टेक ॥ का० ॥ ए ॥ पूरी ऊख आयुष तिहां, सुगति इहां रे, ऊपजशे लघु कर्म ॥ का ० ॥ कालें परिणति पाकशे, जव थाक ८. t For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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