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( १७५) मासे नूपति हो शुं कहे मलया राक्षसी, पीमे जणनें केम ॥ सुपरें तेह जणाशे हो जो थाशे दरिशण जीव तां, चिंते विरही एम ॥ नू ॥१०॥ पय पाणीनो वहेरो हो थाशे मत चहेरो राजिया, था कां अधी र । म कहि जोवा लागो हो जई वागो जिहां मं जूषनी, उघामे बल वीर ॥ ॥ ११॥ दीठी तिहां विण नासा हो उसासा लेती राक्षसी; रूपें कामिनी एक ।। शूकाणी पुःख नूखें हो तन खूखे दीन दया मणी, वस्त्र विहणी बेक ॥ ४० ॥॥ विस्मयं कारी नारी हो ते नारी चरित्र निहालीने, लोक रह्या थिरथंन ॥ कुमर पयंपे नृपनें हो जे दीन रीठी रा क्षसी, तेहिज एह सदंन ॥॥ १३ ॥ खांची बा हेर काढी हो तिहां तामी आमी मारथी, श्राप चरित कहे तेह ॥ नूपे कोपें नि बी हो जणह थीकारें हवी, काढी देशा बेह ॥ जू० ॥१४॥ शोकाकुल विरहाथी हो सुत हाथीनहिं पासी, बेगे मौन धरंत ॥ मरवा न अजिलाखें हो नवि चाखे अशन सुहामणां, है है मोह पुरंत ॥ जू० ॥ १५ ॥ राजा परिजन राणी हो पुःख आणी जूरे सामटा, सचिव घणा अकुलाय ॥ चिंता नागिणि नमीया हो पुरवासी पनीया संत्रमें,
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