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________________ (१४) रावो किहां दीसे हो पूर्वी शें कारण मूलथी, एहनां एह कुसूल ॥ नूग॥३॥ कुमर तणे कटु वयणे हो नृप वयणे श्याम पणुं धरी, मंद वचन कहे एम ।। जोवरावी नवि लाधी हो गई आधी रातें ते किहां, कहो हवे कीजें केम ॥ नू० ॥ ४॥ कुमर सुणी नृ प वयणां हो जल नयणां पूरण नाखतो, इंम कहे हाहा नाथ ॥ धूतारी गई नासी हो विशवासी मुज प्रमदा प्रत्ये, साचुं सहि नरनाथ ॥ नू ॥५॥ धू तारीने वचणे हो कुल रयणे खंडन चाढी, गोत्र उ मूल्युं एण ॥ उलंना इंम देतो हो नृपनंदन पोहोतो मंदिरें, अति पीड्यो विरहेण ॥ नू॥ ६ ॥ वसन सुतनें पूंठे हो नृप उठी आवे झूमणो, उघाझे घर ता ल ॥ इम कहे सुत में दीठी हो तुजली दयिता रा दसी, रूपें करती चाल ॥ नू ॥ ७॥ दोष नहीं को माहरो हो अवधारोनंदनजी हां, हुई अपराधे दंग॥ वाहाली पण जे विणठी हो ते परी दीजें बेदीने, बांहमली करी खंग ॥ ४ ॥७॥ कुमलाणा कां म नमां हो मंदिरमा श्रावी आपणो, संजालो घर सा र ॥ अधमथकी जण हासो हो घर आथ विणासो जाणीये, उडा न सहे जार ॥ नू ॥ ए ॥ कुमर वि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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