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चीम विरतंत कुमर मन वेधिनं हो० ॥ ने द निवितंत बिहुं मन साधितं हो० ॥ बिदु० ॥
॥ कुमर थई थिरथं निहाले वली जिहां हो० ॥ नि० || कोइक नर निरदंत कहे श्रावी तिहां हो० ॥ क० ॥ कुमर संबाहो वेग पियाणो आज बे हो० ॥ पि० ॥ बांको निरखण नेग उतावलो काज बे हो० उ० ॥ ॥ १० ॥ वैर वसाव्यो ध्याय तिथे तिहां घ्याविने हो० ॥ ति० ॥ इव नाएयो अकुलाय चल्यो विरचाइने दो० ॥ च० ॥ विरहो तास कठोर दियामां याथमे हो० ॥ दि० ॥ मां श्राघा जोर चरण पाठा पके हो० ॥ च० ॥ ११ ॥ चिंते चित्तमां आप जणाव्यो में नहीं हो० ॥ ज० ॥ रहेसे मुज संताप मिलणनो ए सही हो० ॥ मि० ॥ चालणारी जो वार इसे एका घमी हो० ॥ ६० ॥ रहेसे पण निशिचार याविश हुं दम्बमी हो० ॥ आ० ॥ १२ ॥ धारी म मनमांहे गयो निज थानकें हो० ॥ ग० ॥ अवसर देखी त्यांहिं आव्यो उचानकें हो० ॥ या० ॥ किरणरूप थइ फाल दिये गढ उपरें हो० ॥ दि० ॥ श्राव्यो पहेले माल विद्याधरनी परें हो० ॥ वि० १३ ॥ कनकवती नृपनारि निहाले पेस तो हो० ॥ नि० ॥ कवण पुरुष णे वाम घ्याव्यो कि
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