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(३१७) थाशक्ति तप श्राचरेजी, साहमीनी करे नक्ति ॥ दान शाला मांगे घणीजी, वारे अधर्म प्रसक्ति । गुण॥६॥ मारि शब्द जनपद थकीजी, काढेपूर तदंत॥वीतरा ग आणा धरेजी, धारे चित्त विकसंत ॥ गु० ॥ ७ ॥ गाम नगर पुर पाटणेजी, थापे जिनना प्रासाद॥जि नजवनें जिन बिंबाजी, पूजे श्रति श्राव्दाद॥ गु०॥ ॥ ॥ अठा महोत्सव करेजी, रथ यात्रा विरचं त ॥ तीर्थ यात्रा आदें घणांजी, सुकृत अनेक करंत ॥ गु० ॥ ए ॥ धर्मजारना धुरंधरुजी, मांहो मांहि सनेह ॥ शासननी उन्नति वधीजी, करता रहे तिहां बेह ॥ गु० ॥ १० ॥ नृप अनुजा पुरतणाजी, लोक सकस सेवे धर्म ॥ लोकोत्तर धर्मे तिहांजी, ढाक्यो लौकिक नर्म ॥ गु० ॥ १९ ॥ शुभधर्ममा थापिनेंजी, पुरजनने समजाई ॥ श्रापूढी बिडं पुत्रनेजी, अने थि महत्तरा जाई ।। गु०॥ १॥ घणा वरस लगें पालीयुंजी, चारित निरतीचार ॥तपोयोगध्याने करी जी, लघु कस्या उरितना जार ॥गु०॥१३॥अंतें श्रण सण थादरेजी, श्रीमती मलया नाम। श्राराधीने छ पनीजी, अच्युत कल्पें ताम ॥ गुण ॥ २४ ॥ बावीश सागर देवीनुंजी, पालीने निरुपम आय॥ महाविदेहें
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