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विवाट ॥ म० ॥ २५ ॥ तह त्ति करी क्षणमें करी रे, न गरी नवले रूप ॥ ० ॥ लोक गया दह दिशि जिके रे, ते तेन्या सवि भूप ॥ म० ॥ २६ ॥ विजय कुम र. मलि मंत्रवी रे, थाप्यो राज सनूर ॥ म० ॥ अन मी अरियण नामिया रे, वाध्यो जस महि मूर ॥ म० ॥ २७ ॥ विजय नृपति करशे हवे रे, थंज्या व कि नो सूल ॥ म० ॥ कांतिविजय पूरी करी रे, श्रा मी ढाल अमूल ॥ म० ॥ २८ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ विजय कुमर पाले प्रजा, दिन दिन परम प्रमोद ॥ शेठ कुमर संगे चतुर, करतो रंग विनोद ॥ १ ॥ ए क दिवस गुणवर्त्मनें, भूप कहे सदभाव ॥ राजगयुं जे में लघुं, ते सवि तुज परजाव ॥ २ ॥ श्रतिदुक्क रपणो यदरी, कीधुं मोटुं काज ॥ प्रत्युपकार करण जणी, ब्ये धुं हुं तुज राज ॥ ३ ॥ अवसर निरखी बोली जं, शेठ कुमर एम वाच ॥ में धरा फिरते निरखी, तुं मणि बीजा काच ॥ ४ ॥ सुगुणा तेह सराहियें, जे ज गमांहें कृतज्ञ ॥ प्रत्युपकार करे जिके, ते सघला धुरि विज्ञ ॥ ५ ॥ राज्य वधो दिन दिन घणो, हुं सेवक तुं स्वामि ॥ जो मानो मुज वीनती, तो सारो एक काम
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