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________________ (२७) ॥१६॥अवगणतो उनट पणे रे, सूतो सेजें तुरंग ॥म० ॥कमर वह मिसावीने रे, मरदे पय निरजंग ॥म० ॥ १७॥ विजय कुमर विधिसुं जपे रे, थंजन मंत्र वि शेष ॥ म ॥ ते पण नरना गंधथी रे, ऊठे करी अं देश ॥ म०॥१७॥ जिम जिमऊठे सेजथी रे, राक्षस मारण हेत॥ म॥तिम तिम फरस तणे सुखें रे, लो टि पमे गत चेत ॥ म ॥ १५ ॥ मंत्र जाप पूरण थयो रे, मूक्यो मरदन जाम ॥ म ॥ कुमर बिहुने मा रवा रे, ऊग्यो राक्षस ताम ॥ म० ॥२०॥ थंन्यो अनोपम मंत्रथी रे, सक्ति थर विछिन्न ॥ म०॥ दास थयो करजोमीने रे, नाखें एम वचन्न ॥ म॥१॥ रेरे साहस मंगणी रे, कुमर सुणो एक वात ॥ म ॥ मुज महिमा मंत्रे हस्यो रे, जिम धन दक्षण वात ॥म० ॥॥ किंकर हुं कीधो खरो रे, मंत्र श क्तिसुं श्राज ॥ म॥ सेवक साचो जाणीने रे, द्यो सा हिब को काज ॥ म॥२३॥ कुमर कहे सुण तें करी रे, मुज नगरी निरलोक ॥ म॥गत मंगल वि धवा जिसी रे, दीसे बाज सशोक ॥म ॥२२॥ म णि माणिक कण कंचणे रे, पूरण जरी घर हाट ॥ म ॥ रचि तोरण स्वस्तिक जलें रे, सुरजित कर स Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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