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________________ (२४६) सिद्ध प्रसिद्ध रे॥ मु० ॥ २५ ॥ कहे सकल परें रा जियो, बोल्यो एम मरंत रे ॥ सिक कृपा करी टालिये, विज्वर एह पुरंत रे ॥म०॥ २६ ॥ सिकें तव जल गंटीयु, अनल हुट उपशांत रे ॥ ढाक्योअंब करंजी उ, तव रहियो विश्रांत रे ॥ मु० ॥ २७॥ काने ते ह करंमने, बेसे नहीं कोई आय रे ॥ सापें खाधोशिं दरी, देखी कुण न मराय रे॥ मु०॥ ॥ कुशलें सिद्ध करमीयो, उघामी फल आय रे॥विस्मित नूपा दिक नणी, आपहथु जव देयं रे॥ मु०॥ एत व महीपति मरतो हीये, खंचे कर मुख फेरी रे॥ थापी बीजानें करें, लेवरावे सिद्ध प्रेरी रे।मु०॥३०॥ जीवानो नंदन वमो, सचिव कस्यो गुण खाणी रे ॥ चोथा खंगनी चौदमी, कांतें ढाल वखाणी रे।मु०॥३१॥ ॥दोहा॥ ॥ नृप पूछे किम जबल्यो, एह महालय सिद्ध ॥ मंत्रीने जेणे हां, मरण अवस्था दीध ॥१॥कहे सिद्ध ए पलव्यो, तुज अन्याय कुवृक्ष ॥ हवे फूल फ ल एहनां, लहेशे तुं प्रत्यक्ष ॥२॥ महीयल मांहिं महीपति, जेह करे नय पोष ॥ नासेआपद तेहथी, वाधे संपद कोष ॥३॥ नीतिमाहे श्रापद तणो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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