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________________ (१६३) ॥दोहा॥ ॥ चरित्र सुणी चित्तमांचक्या, नूपादिक जन जूर॥ अनुत जय आनंद फुःख, हास्य सोग आपूर ॥१॥ वली विगत महबल कहे, मृतक तेह नवरा ॥ चं दन रस चर्चित करी, थाप्युं मंगल ग॥॥ श्र निकुंम दीवा चिहुँ, राख्यो साधक पाल ॥ पद्मासन बेसी जप्यो, मंत्र तिणें ततकाल ॥३॥ मृतक तुरत नन उलले, पमे न पावक कुंम ॥ खिन्न थयो जप ध्यानथी, साधक चिंता मंग॥४॥ तेहवे शब गय णांगणे, उमयो करतो हास ॥ अवलंब्यो तिमहिज जई, वमशाखा अवकाश॥५॥ चूको कांएक ध्या नमां, तेणें न सीधो मंत्र ॥साधेशुं फिरि श्रावती, रा तें करीशुं तंत्र ॥ ६॥तुज बलें साधन तणी, थाशें वहेली सिफ॥रहो सुजग योगी कहे, उपगरवानी बुद्ध ॥ ७॥ वचन प्रमाणी हुं रह्यो, थई उपसाधक पास ॥योगी मरतो मुजनें, बोल्यो एम प्रकाश ॥७॥ ॥ ढाल सातमी॥ न्हानो नाहलो रे। ए देशी ॥ ॥ उपसाधक जो तं थयो रे, तो सवि थाशे काम ॥ नंदन रायना रे ॥पण चोलो मुज चित्तमां रे, ए हवो एक इंण गम ॥ ॥ १॥ मुज़ संगें जो देख Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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