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( १६२ ) नकटी करती तितरेंजी ॥ नं० ॥ मुज खांधाथी उत रेंजी ॥ नं० ॥ कहेवा लागी ईतरेंजी ॥ नं० ॥ किए न गरें तुं विचरेजी ॥ नं ० ॥ नाम थानादिक में ते श्रा गें, जांख्युं सघलुं साच ॥ न० ॥ २१ ॥ मुज ऊपर विश्वासीजी ॥ नं० || बोली ते उल्लासीजी ॥ नं० ॥ सुणो कुमर सुविलासीजी ॥ नं० ॥ भुज नासा रूजा सीजी ॥ नं० ॥ तव हुं पीउनुं द्रव्य गुफामां, देखा मीरा तुम आय ॥ मु० ॥ २२ ॥ ईम कही ते घर चालीजी ॥ नं० ॥ हुं चढी वम मालीजी ॥ नं० ॥ बोड्यो चोर संजालीजी ॥ नं० ॥ नाख्यो नीचो जा लीजी ॥ नं० ॥ उतरि जोजं तो तिए साखें, बांध्या तिमहीज दीव ॥ ३० ॥ २३ ॥ में जाएयो ततकाला जी || नं० ॥ साधक देवी चालाजी | नं० || बोमी मन ढकचालाजी ॥ नं० ॥ फिरि चढीयो वम माला जी ॥ नं० ॥ बंधन बोमी केश ग्रहीनें, ऊतरियो व ली देव ॥ ० ॥ २४ ॥ खंध चढावी लीधुंजी ॥ नं० ॥ अक्षत शब परसीधुंजी ॥ मं० ॥ जई योगी नें दी धुं जी ॥ नं० ॥ ईम पर कारज की धुंजी ॥ नं० ॥ श्रीजे में ढाल ए बी कांतें कही रस रेल ॥ खं० ॥ २५ ॥
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