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________________ (१६७) ॥१०॥ श्राधी रातिमा गगन विचालें, वागां ममरू माक ॥ वीर बावन आगे चलें, पामंता पोढी हाक ॥ ह.॥२॥ अज्रथकी उद्जट उतरती, शक्ति क हे रे धीच॥ मृतक अशुभ आणी किस्युं हुं, तेमी कां पीठ ॥ ह० ॥ ३ ॥श्म कहेती योगीने साही, नाखे श्रगनिनें कुंम ॥ नागपाशने बंधनें मुज, बेकर बांध्या प्रचंम् ॥ १०॥४॥ सुंदर रूप कुमर तेमाटें, मारी से कुण पाप ॥ श्म कहेती नल मारगें, बिहुँ पग ग्रही ऊमी श्राप ॥ ह० ॥५॥बे शाखा विच हुं प गनीमी, ऊंचा पग शिर हेठ॥ टांगीमुजने ए वमें, उमी गई खेती कुलेठ ॥ ६ ॥६॥ शब ते तिमहिज उमी तिहाथी, क्ल[ गुमाले श्राय ॥ पुरखोके जोडे वली, तिहां पाठी कोट फिराय ॥ १०॥ ॥ लोक कहे दीसे ले बांधुतो, किम अशुचिए कीध ॥ नृप कहे मुखमा एहनें, नासा पल होशे कुशुद्ध ॥ ६॥७॥ लोक कहे म कहिजतां राजा, जोवरावे जण पास ॥ दीनी वलगी दांतमा, नासा तिण थायो विलास ॥हा॥ ए॥ ए में साधकनें न जणाव्युं, कुमर करे । म खेद ॥ चूप कहे नवितव्यनां, मेटीजें केम उमेद ॥ इ० ॥१०॥ जूप कहे केम करथी बूट्या, बांध्या वि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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