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________________ ( १६८ ) " पधर पाश ॥ सुत कहे तेहनुं पुंबकुं, मुज मुखमां व्युं कास ॥ ६० ॥ ११ ॥ क्रोध जरी चान्युं में तेहथी, पीड्यो पन्नग जोर ॥ नर्म घई दे तो पड्यो, न चढ्युं विष मंत्री घोर || इ० ॥ १२ ॥ दोय पहोर रयणीना काढ्या, दुःखमां में विललात ॥ संकट सहु टलियां हवे, मलतां क्रम योगें तात ॥ ० ॥ १३ ॥ वचन कथं सुरशक्ति मृतकें, ते मलियं प्रत्यक्ष ॥ मुज विरतंत कह्यो सवे, तु म आगल पूरी पक्ष ॥ ० १४ ॥ लोक प्रशंसें शिर धुतां, हो हो अतुल बलवीर ॥ थोमा काल मांहें घणी, जल सांसयो पीमशरीर ॥ इ० ॥ १५ ॥ नावे वचन पथ मन नवि मावे, कक्षेतां पण जे वात ॥ ते संकट जलराशिनो, तारु एक तुंहीज तात ॥ ० ॥ १६ ॥ अ हो साहस निर्भय पण माया, बुद्धि महोद्यम खास ॥ उपगारक करुणापणुं, दृढता मति पुण्य प्रकाश ॥ ६० ॥ १७ ॥ नारि लदी लक्षण लाखीणी, मलियो मनें वेग || लोक छाक करे तिहां, इंम वर्णन गुणमति नेग ॥ ६० ॥ १८ ॥ भूप कहे नंदन मंगल ते, देखामो बेक्यांहिं ॥ कुमर नृपति जण विंटी, देखामे जईने त्यांहिं ॥ ६० ॥ १७ ॥ दरखें लोक मल्या उत्कर्षे, नि रखे पावक कुंम ॥ सोवन पुरिसो तिहां तिणें, दीगे For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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