________________
( 290 )
न त्यां रही, मागी नृप आदेश ॥ जननी जनक वधाव वा, करे प्रयाएं देश ॥ ७ ॥
॥ ढाल नवमी ॥ घरे यावोजी आंबो मोरी ॥ ए देश ॥ ॥ मलय कुमरने नृप कहे, संप्रेमण मन न वदंत ॥ गुणवंताजी कुमर कला निला ॥ तोपण कद्देवा व धामणी, प धारो पुरि मतिवंत ॥ गु० ॥ १ ॥ प्रीति लता सिंची रसे, पहेलांथी वधारी जेह ॥ सफल हूई तुम यावतां, पोता वट राखी बेद ॥ गु० ॥ २ ॥ वीरधवलनें मुज वीनति, कहेजो करी कोमि प्रणाम ॥ मुज ऊपर हित खादरी, गणजो लघु दास समान ॥ ० ॥ ३ ॥ महबलनें मलया प्रत्यें, पोहोतो था पू
काज || देखी दंपती ऊनियां, बोलावे वचनें स जाज ॥ गु० ॥ ४ ॥ महबल कहे मुज ससुरनें, कहे जो जई को मि सलाम ॥ चोर थयो हुं रावतो, खम जो ते गुनह प्रकाम ॥ गु० ॥ ५ ॥ विए शीखें तुम नंदनी, लेई श्राव्यो परनो अधीन ॥ उपजाव्युं दुःख याकरूं, ते करज्यो मांई वात विलीन ॥ गु० ॥ ६ ॥ मल य जणी मलया कहे, बांधव मुज वात नितार | वी नवशो माय तातनें, मुज श्रागमनादि प्रकार || गु० ॥ ॥ ७ ॥ चिंता न करशो चित्तमां, मुज सुख शाता बे
"
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org