SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१७१) श्रांहिं ॥ चतुर तुमें पण चालतां, सावधान रहेजो रा हिं ॥ गु०॥ ॥ वचन सहुनां चित्त धरी, गलगल तो थाय विदाय ॥ उपपुर खगें आमंबरें, महिपति पोहोचावा जाय ॥गुण॥॥केटले दिन चंडावती, पो होंच्यो कहे सकल वृत्तांत ॥ खबर सही माता पिता, पामे तिहां हर्ष अनंत ॥ मु०॥१०॥ महबल मलया संगमें, विलसंते निवहे काल ॥ एक समय बेग वि न्हे, उंचा मंदिरने जाल ॥ गु०॥ ११ ॥ नाक विहु णी नायिका, आवी एक मंदिर बार ॥महबल देखी ने कहे, एक पश्यतहरनी नारि ॥ गु०॥१२॥ थिर मीटें तव उलखी, प्रमदायें ते उपमात ॥ प्रीतम क नकवती हां, दीसे डे श्रावी कुजात ॥ गु०॥ १३॥ गुह्य न कहेशे लाजती, जो उलखशे मुज देख ॥ ते हथी हुं फ्मदे रहुं, पूडो अवदात विशेष ॥ गु०॥१४॥ श्म कहेती नुवणंतरें, बेगी जई सुणवा विगत्त ॥ क नकवती श्रावी करे, नृप नंदनने प्रणीपत्त ॥ गुण॥१५॥ श्रादर ये पूज्या थकी, कदेशे श्हांश्राप चरित्त॥ नवमी त्रीजा खंगनी, कांते कही ढाल पवित्त ॥ गुण॥१६॥ ॥दोहा॥ ॥ पक्षणे सा चंद्रावती, नगरीपति उद्दाम॥वीरध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy