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(ए) ज॥॥वाही पण वैरणी हुई, जिम विषधरीय मंकी, आंगुली होय ज्वालही होराज ॥ रिपुकुलने जां न वी मले, ते पहेली ए इणवी, पाप न गणवो काल्ही होराज ॥ ए॥ पुःख जरी रयणीने गमी,प्रह कालें नृप तेमी, सेवकनें श्म जासे होराज ॥ मलयाने ह
जो तुमें, हुकम फरी मत पूजो, रखे किहां किण ए नासे होराज ॥ १० ॥मंत्री सुबुझिसुएयो सवे, व्यति कर ए कन्यानो, वी नृपने लेटे होराज॥करजोगी इम वीनवे, असमंजस ए मांड्यो, नूप कहो किण खेटें होराज ॥ ११॥ सुं अपराधि कन्यका, नेह गयो क्यां पहेलो, धरता जे एह साथें होराज ॥ विषतरु वर पण कापवो, न घटे जेह उलेख्यो, धुरथी आपणे हाथें होराज ॥१५॥ देव विचारी कीजीयें, जिम न होवे परतावो, पडे फल पाकंतां होराज ॥सकल वि चार सुणावी, सचिव नणी नृप धुरथी, सचिव स्यो नाखंतां होराज ॥ १३ ॥ मौनधरी मंत्रि रह्यो, सेवक नृप आदेशें, मलया मंदिर आवेहोराज ॥गद मद कंठे इंम कहे, तुज उपर नृप रूठगे, थाणा वध फुरमावे होराज ॥ १४ ॥दीन वदन कन्या कहे, वीरा नृप किम कोप्यो, ते कहे न लडं काई होराज॥ क
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