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________________ (१२५) करी साज, करवतियां धर काटण कोरमीजी ॥ संप्रेमी श ततकाल, असवारी मनधारी ए उमीजी ॥ १७ ॥ कोप्या जे नरपाल, सतकारी वोलावं तेहनेजी॥ त्यां लगें धीर धराय, रहो रहो म हिज करतां ए बनेजी ॥२०॥ इंम कही जव्यो नूप, बीजे खंमें सरस सोहा मणीजी ॥ ए पन्नरमी ढाल, कांतिविजय सविलास पणे नणीजी ॥१॥ इति ॥ . ॥दोहा॥ ___॥ कुमर कहे कन्या प्रत्ये, रहस्य पणे तजी ला ज॥ करी प्रतिज्ञा तुज मुखें, ते में पूरी आज ॥१॥ गत दिवसें देवी गृहें, मिल्या रजसमांजेह ॥ कही न सक्या निज निज कथा, हवे कहीजें तेह ॥॥ एहवे वेगवती तिहां, मलयानी धामा ॥ श्रावी कर जोमी बिन्हे, पूढे एम हसा ॥३॥ कारज ए देवी तणां, अथवा अवर उपाय ॥ अम मन संसय आफलें, कहो सुजग समजाय ॥ ४॥ कहे कुमरी ए माहरे, वीसवासणी बे स्वामि ॥ सुखें कहो शंका तजी, एह मुज जामणि गम ॥५॥ गजमुख दीधी मुखिका, तेह प्रमुख सुचरित्र ॥ जांखीने दिन अपर मुं, संध्यानु कहे चित्र ॥ ६॥ . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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