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( १२३ )
॥ ढाल शोलमी ॥ सखीरी खायो उन्हालो टारो ॥ ए देशी ॥
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॥ पियारी सांज समय बीजे दीने, वीजे दीने, नृ पथी मांगी प्रपंच ॥ मृगाक्षी सांजलो || पियारी मंत्र साधन मिश नीकल्यो, नीकल्यो, नूप कनें लेई लंच ॥ मृ ॥ १ ॥ प० ॥ ते द्रव्यें सूतारना ॥ सू० ॥ उपक रण लेई मूल || मृ० ॥ प० ॥ रंग अनेक लीया वली ॥ ली० ॥ मृगमद प्रमुख अतूल ॥ मृ० ॥ २ ॥ प० ॥ सामग्री इम संग्रही ॥ सं० ॥ श्राव्यो देवी धाम ॥ मृ० ॥ पि० ॥ विवर सहित ते फालिका ॥ फा० ॥ कीधी घमी अभिराम ॥ मृ० ॥ ३ ॥ पि० ॥ खीली बानी तेहमां, ते० ॥ बेसारी करी संच ॥ ८० ॥ प० ॥ साल संचे मुख ढांको || मु० ॥ नीपायो परपंच ॥ मृ० ॥ ४ ॥ पि० ॥ एहवे त्यां के तस्करा | के० ॥ मूकी जीत मंजूष || मृ० ॥ प० ॥ तस्कर एक टवी गया ॥ ४० ॥ पुर चोरी ढुंश ॥ ० ॥ ५ ॥ प० ॥ पूर्व सामग्री गोपवी ॥ गो० ॥ हुं थयो चोर समान ॥ मृ० ॥ पि० ॥ जा एकाकी ते कनें ॥ ते० ॥ उज्जो रह्यो करी शान ॥ मृ० ॥ ६ ॥ प० ॥ मुजने निरखी इम कड़े ॥ ३० ॥ ते अति लोजने व्याप ॥ मृ० ॥ प० ॥ तालुं नांजी
ते
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