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नवि शकुं ॥ न० ॥ तुं मुज खोली आप ॥ मृ० ॥ ७ ॥ पि० ॥ तुरत उघामी में दीयो ॥ में० ॥ लीधो तिणे स वि माल ॥ मृ० ॥ प० ॥ ताणी बांधे पोटली ॥ पो० ॥ द्रव्यतणी लोजाल ॥ मृ० ॥ ८ ॥ पि० ॥ बीही तो मु जने म कहे ॥ ५० ॥ शूकी सतनी मूंग ॥ मृ० ॥ पि० ॥ जाउंतो हवे चोर ते ॥ चो० ॥ के नृप जन करे पूंव ॥ मृ० ॥ एं ॥ प० ॥ मारे मुजने मूलथी ॥ मू० ॥ थरके तेहथी चित्त ॥ मृ० ॥ पि० ॥ थानक मुज जीव्या त पुं ॥ जी० ॥ देखामो कोई मित्त ॥ मृ० ॥ १० ॥ पि० ॥ पद्मशिला ते जवननी ॥ ते० ॥ में उघामी खांच ॥ मृ० ॥ प० ॥ माल सहित ते चोरने ॥ ते० ॥ घाल्यो उंचे खांच ॥ मृ० ॥ ११ ॥ प० ॥ तिमहीज ऊपर तेवी ॥ ० ॥ विवर अंतर राख ॥ मृ० ॥ पि० ॥ ऊ तरतां अंगण तलें ॥ ० ॥ दीगे वरुतरु जांख ॥ मृ० ॥ १२ ॥ प० ॥ दोमी वम ऊपर चढ्यो । ऊ० ॥ रहुं जोतो तुज वाट ॥ मु० ॥ प० ॥ दी तो वरुनी कूखमां ॥ कू० ॥ भूषण वसननो थाट ॥ मृ० ॥ १३ ॥ प० ॥ अपह रिलीधा देवी यें ॥ दे० ॥ पहेलो मुज समुदाय ॥ मृ० ॥ " पि० ॥ ते तिए बांनां गोपव्यां ॥ गो ० ॥ दीसे बे ए प्राय ॥ मृ० ॥ १४ ॥ पि० ॥ में लीधो ते उलखी ॥ जं० ॥
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