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________________ (११) पधरावियांजी॥संतोष्यो परिवार,मान महोत दै सहु राजी कीयांजी ॥१०॥ लोक कहे लख कोमि, मसती जोमी विधाता मेलवीजी ॥ मुखानंग समान, रतिपति नायकनी जोमी हवीजी ॥ ११॥ अवसर लही अवनी श, पूढे त्यां माहाबलने खांतशुंजी ॥एकाकीणे ग म, लगन समय आव्या किण लांतशुंजी ॥ १२ ॥ कुमर जणे महाराय, जाणुं नहिं किण देवी आणी उजी ॥ नृप कहे सघj साच, कुलदेवी निपजावे जा णीजी ॥१३॥ वली माहाबल कहे एम, शीख क रो तो चालु घर नर्णाजी ॥ मुज विरह मा तात, कर तां होशे चिंता मन घणीजी ॥ २४॥ बार पहोरमां जाश, न मटुं तो ते मरशे नेहथीजी॥करिकरुणा क रुणाल, शीख दीयो हवे मुजने तेहथीजी ॥ १५ ॥ पनवेने दिन सूर, ऊग्या पहेलो जो जाई मधुंजी ॥ जीवंता मा बाप, तो देखुं हवे कहुं वली केटढुंजी ॥ १६॥राय कहे सुण धीर, धैर्य धरो मत थाना कलाजी॥सघलानी मुज चिंत, करवी में जाणो गु ण आगलाजी ॥ १७ ॥ बाश योजन पूर, पोहवी गण नगर शहांथी अजी ॥आज रयणी एक याम, पगखोजी वोलावीश हुँ पडेंजी ॥ १७ ॥ करह लिया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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