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________________ (ए४) पुर्वचनें बांध्यां जिके, रुखा नवें पापो रे ॥ जोगवियां फल तेहनां, कनका थईबापो रे॥ धि०॥२०॥ सूति पणे ए सुंदरी, नव वैरिणी जाणी रे ॥ कनकवतीनी नासिका, सीधी मुखें ताणी रे॥धि ॥१॥ हसतां बांधे जे जीवमो, तेह रोतां न बूटे रे ॥ अनरस ना वें परिणमी, चिरकालें ते खूटे रे॥धि ॥२२ ॥ ढाल कही अमवीशमी, चोथे खंमें ए चावी रे ॥ कांति कहे मन उबसी, सुणो श्रोता नावी रे॥धि०॥३॥ ॥ दोहा ॥ __ कहे सुगुरु नूपति जणी, शेष कथा विरतंत ॥ सावधानता आदरं, परषद सकल सुणत ॥१॥ म दन धरंतो गतनवें, प्रियसुंदरीशं राग॥ कंदर्प नव तेहथी हु, मलयाशुं रस लाग ॥॥पूर्वे मलया महबलें, लही संकल मर्म ॥ दीधुं दान सुसाधुने, पाल्यो श्रीजिनधर्म ॥३॥ तेहथी सुकुलादिक तणी, सामग्री लही हिं। आराधि विहमे नहीं, सुकृत कमाई क्यांहिं ॥४॥ जवतारक जिनधर्मनें, रीजि नजो अह खीज ॥ उलटो पण सवलो फलें, नूमि पड्यां जो बीज ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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