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( १३४) श्रा०॥ काढे हांथी नीठवी ॥ ११॥ श्म कही बी जे खंम, थाप्युंशीशअखंम, श्रा०॥तेहमां वसीखी ली जमी ॥ राख्या पवननां माग, नीचे बगने लाग, आ ॥ चतुराईझुं ते घमी ॥ १५ ॥ जाणुं एती वात, कहो ागें अवदात, आ० ॥में न लह्या तिहां संक्र मी। बीजे खंमें एह, कांति कहे धरी नेह, आ० ॥ ढाल नणी उंगणीशमी ॥ १३ ॥
॥दोहा॥ ॥ कहे माहाबल माननी सुणो, आगे जे हुई वा त ॥ थंन तिस्यो में चीतस्यो, जिम जाएयो नवि जा त ॥ १॥रंग प्रमुख जे ऊगस्या, ते वाह्या जलपूर।। एहवामां फरी चोर ते, आव्या नवन हजूर ॥२॥ चोर सहित पेटी तिकें, जिहां तिहां जोतांदी॥तस शाने बोलावतां, कीधाश्रादर ३०॥३॥ मुज पूजे मंजू पशं, दीठो एक किहां चोर॥बीउँमें देई यादरें, कद्यु एम तिण गेर ॥४॥र्थन एहजो पूर्वनी, पोलें मूको आज ॥ तो देखाउँ चोर ते, व्यवहारें नहीं लाज ॥५॥ ॥ ढाल वीशमी। थे तोने आया उसगुं, उलगाणाजी॥
जिरमट खाश्यो गाल नएया॥ ए देशी॥ ॥ चोर कहे श्म उमही । गुणवंताजी ॥ राज जलें
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